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तेरी लत

कई दिनों से चुप- सा है। शायद कोई दुख -सा है। जड़ सा लगता है ये मन जैसे सूखी सी रुत -सा है। ठहरा  है कुछ  ऐसे समा जैसे  कोई  बुत - सा  है। ये आलम वतनपरस्ती का तेरी प्यारी  लत - सा  है।...

जिद

साज़िशें  किस्मत  हजार  करेगी। पर होंसला तेरे प्यार का आगे बढायेगा। फिर खुद लेकर आयेगी फूल हाथों में जब वो मेरी ज़िद के आगे हार जाएगी।         ....... मिलाप सिंह भरमौरी