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Showing posts from January, 2018

कुहासा

कुदरत का मन मैला है। जो खूब कुहासा फैला। पथिक चला है बोझा उठाए हाथ में भी इक थैला है। कहां-कहां की धुंद से निपठू कुत्ता बनकर किसपे झपटूं कोई एसी कार में जाए मजदूर के हिस्से स...