कुहासा
कुदरत का मन मैला है।
जो खूब कुहासा फैला।
पथिक चला है बोझा उठाए
हाथ में भी इक थैला है।
कहां-कहां की धुंद से निपठू
कुत्ता बनकर किसपे झपटूं
कोई एसी कार में जाए
मजदूर के हिस्से सिर्फ कुहासा आए.....
........ मिलाप सिंह भरमौरी
कुदरत का मन मैला है।
जो खूब कुहासा फैला।
पथिक चला है बोझा उठाए
हाथ में भी इक थैला है।
कहां-कहां की धुंद से निपठू
कुत्ता बनकर किसपे झपटूं
कोई एसी कार में जाए
मजदूर के हिस्से सिर्फ कुहासा आए.....
........ मिलाप सिंह भरमौरी
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