छोटे से मन में कितने भाव बच्चे के से सतरंगी चाव। पल- पल पलटे पटल दृष्टि कभी मुक्कमल कभी आगाज़। कितनी प्रचण्ड कितनी शमन तरंगे मन की हो गई खाक। ये उछल कूद है तो करता रहेगा नम ह...
आसान नहीं होता सच को सच कहना। कितना कुछ पड़ता है भाई इससे सहना। दूर हो जाते हैं पोल खुलते ही अपने सब। और तन्हा- सा पड़ता है दुनिया में रहना। .......... मिलाप सिंह भरम...
बेटी - बेटा एक समान यूँ तो लोग सबके सामने कहते हैं। पर चोरी छुपके टोने - टोटके न जाने क्या - क्या वो करते है। लिंग भेद पर उनकी दृष्टि से शायद देवों को भी हैर...