सूख चुके हैं पत्ते
कई बार मन में यह ख्याल आते हैं
चलो इक बार फिर उस मोड पर जाते हैं
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याद कर के उन हसीन लम्हों को
तन्हाई में कुछ पल फिर से मुस्कुराते हैं
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सूख चुकी है मिट्टी तपन है अब हर ओर
शायद कुछ फूट पडे इक आँसू गिराते हैं
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गुजर चुके हैं कितने ही तुफान बरसातो में
गिरे बहुत पत्ते पेडों पर फिर भी आते हैं
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.......... मिलाप सिंह भरमौरी
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