क़भी बन के शराबी

कभी  बन के  शराबी  झूमा कर ।
कभी  पागल  बन भी  घूमा कर।

रोज लेता  है धरती पाँव के नीचे
कभी  माथे से भी इसे चूमा कर ।

तू  बाहर  तो  करता  रोज  सफ़ाई
कभी साफ दिल का भी कौना कर।

रहने  दे  हर  घर  चहल- पहल  तू
वक़्त आंगन न किसी का सूना कर।

     .......मिलाप सिंह भरमौरी

Comments

Popular posts from this blog

Najar ka asar

सौहार्द