सुरंग होली धर्मशाला
बहुत दुर्गम क्षेत्र है यह
बहुत कठिन है यहाँ का जीवन
दस दस किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है
तब आता है सामने घर
आसमान को छूती चढाईयाँ
पाताल के दर्शन कराती खाईयाँ
ऐसे हैं चंबा के गांव
घूमते फिरते आ जाना कभी
कर जाना कुदरत से पहचान
चंबा की एक तहसील है होली
जो धौलाधार श्रेणी में पडती है
बीच में है एक अलंघय पहाड़
और पहाड़ के ठीक पीछे
धर्मशाला की बस्ती है
अगर इस पहाड़ में एक सुरंग बना देँ
दोनो किनारे साथ मिला दें
तो धर्मशाला और होली के लोग
पैदल चल के ही काम चला लें
लेकिन इस समय उनको 300 किलोमीटर का
सफर तय करना पड़ता है
तब कहीं जाकर धर्मशाला को होली
और होली को धर्मशाला मिलता है
अब बात आई इस सुरंग की
क्या लोगों को इसके बारे में नहीँ पता है
लोगों को सब पता है
पिछले पच्चास साल से उनका यह मुद्दा है
कई बार सर्वे हुआ है इसका
कई बार घोषणा भी की गई
कई बार कोस्टिंग की गई इसकी
पर बात कागजों तक ही रह गई
जी भूल गया हूँ मैँ
कविता को शीर्षक देना
इसका शीर्षक है "सुरंग होली धर्मशाला"
.... मिलाप सिंह भरमौरी
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