क्यों खाव न देखू
क्यों खाव न देखूं मैं तुझको पाने के
तू है ही अलग सच में सारे जमाने से
तेरी नजर पडते ही हलचल सी होती है
पहेली सी बनती है पलकों को गिराने से
तेरा भ्रम मुझको चिढाता है ईशारों से
तू बन के हकीकत सच गम को हराने दे
दिल खोल के दिल तू जजबात व्यां कर दे
कुछ नहीं होगा यूं इन्हे सीने दबाने से
........ मिलाप सिंह भरमौरी
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