संयम

सूरज से खफा हूँ
आजकल जल्दी छुप जाता है।
घर पहुंचने से पहले ही
गुप अँधेरा हो जाता है।

सुनसान रास्तों की
अजीब सी दहशत है।
इन पर अकेले चलने से
मन बहुत घबराता है।

कभी कभी दिल करता है
खूब शिकायत करूं।
तख्तीयां लिखूं नारों की
चढकर पहाड पर धरना दूँ।

पर जानता हूँ...
अपनी चाल बदलना
सूरज का नियम नहीं है।
फिर भी पता नहीं क्यों
मुझमें ही संयम नहीं है।

......... मिलाप सिंह भरमौरी

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