बातें तमाम सच्ची नहीं हैं
कर लेते हो सबपे यकीन आदत तुम्हारी अच्छी नहीं है।
तुने सुनी हैं जो लोगों से, वो बातें तमाम सच्ची नहीं हैं।
खफा खफा रहते हो क्यों ,तुम फिर से करीब आओ न
दूरी तुम्हारी इस कद्र ,न जाने रूह क्यों सहती नहीं है।
डंसने को मुझको आता है ,तेरे बगैर जहरीला सूनापन
कब आओगे कब आओगे क्यों मुझसे तू कहती नहीं है।
जमाने का मुझमें हुनर नहीं ,कि हर बात को कह सकूं
दिल बहुत करता है मगर, ये जुबान कुछ कहती नहीं है।
....... मिलाप सिंह भरमौरी
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