फिर भी जल्दी रहती है

पता नहीं क्यों हर पल घडी पे  आँखें रहती हैं।

काम नहीं है कोई भी फिर भी जल्दी रहती है ।


ट्रेन छूटी तो बस से भागे दौड रहा है आगे आगे


पता नहीं  किस  मोड पे मेरी मंजिल रहती है ।


बादल की परछाई सी है मति भी भरमाई  सी है


आवाज  सुनाई देती है  जैसे नदी सी बहती है ।


मेरी तरह कई ओर भाग रहे सारी रात जाग रहे


थकी हुई बैठी  सोच किससे किससे लडती  है।

         ........ मिलाप सिंह भरमौरी


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