धूल जमी हो पर्दे पर तो उसको झाड़ा जा सकता है। धूमिल पड़ चुकी परिपाटी को फिर से निखारा जा सकता है। निराश न हो गर गलत हो गया, शायद तजुर्बा कच्चा था। कुछ भी नहीं मुश्किल है यहाँ...
आज तक का तजुर्बा यह बताता है। यहाँ अपनी कमी हर कोई छुपाता है। वंदा कोई न मिलेगा जो हो दूध से धुला, पर हर कोई खुद को दूध सा दिखाता है।। .......... मिलाप सिंह भरमौरी
बड़ी जिद्द थी तिनकों की कि तूफ़ान के साथ चलेंगें। अब सन्नाटे से ही सहम गए हैं फुफकार पे क्या करेंगे। एक तरफ है अंगारों का पथ एक तरफ शीतल घाटी। देख रहे हैं पल -पल बेकल जाकर ...
नशा कोई भी हो सरूर आ ही जाता है। उठी हुई नजर में कसूर आ ही जाता है। सच में... हैरान नहीं हूँ कुछ भी मैं तेरे लफ़्ज़ों पर कामयाबी पे सबको गरूर आ ही जाता है। ........ मिलाप सिंह भरमौरी।
दूर रहने का मलाल होता है। बसल का हर लम्हा कमाल होता है। क्या तुम भी रहते हो उदास इस तरह... बिछुड़ के तुमसे मेरा जो हाल होता है। .....… मिलाप सिंह भरमौरी
नारी बिन है सूना संसार। सुनसान लगे सब घर वार। विसर जायेगी जगत कल्पना है नारी शक्ति का अवतार। जिस घर में जन्मे बिटिया रानी धन दौलत से भर जाए भंडार। किस कोने से कम है नारी क्यों कोख में करता है संहार। ...... मिलाप सिंह भरमौरी अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
अभिनंदन भारत माँ के जयकारे दुश्मन के घर में लगाने वाले अभिनंदन का अभिनंदन है दुश्मन को धूल चटाने वाले अभिनंदन का अभिनंदन है। सरहद पार पताका फहराई बाज से जिसने चिड़िया ल...
कई दिनों से चुप- सा है। शायद कोई दुख -सा है। जड़ सा लगता है ये मन जैसे सूखी सी रुत -सा है। ठहरा है कुछ ऐसे समा जैसे कोई बुत - सा है। ये आलम वतनपरस्ती का तेरी प्यारी लत - सा है।...
साज़िशें किस्मत हजार करेगी। पर होंसला तेरे प्यार का आगे बढायेगा। फिर खुद लेकर आयेगी फूल हाथों में जब वो मेरी ज़िद के आगे हार जाएगी। ....... मिलाप सिंह भरमौरी
कभी बन के शराबी झूमा कर । कभी पागल बन भी घूमा कर। रोज लेता है धरती पाँव के नीचे कभी माथे से भी इसे चूमा कर । तू बाहर तो करता रोज सफ़ाई कभी साफ दिल का भी कौना कर। रहने...
हर बात घूमाना ठीक नहीं कभी सीधी - सी भी कह दो न। कब तक आएं पीछे- पीछे कभी साथ हमारे भी चल दो न। कुछ बातें करेंगें आधी - अधूरी ख़ामोशी -सी कुछ मजबूरी। कुछ पल के साथ की चाहत है कुछ गल...
दुश्मन अपना कोई ओर नहीं है। बस खुद पर अपना जोर नहीं है। औकात नहीं कोई आँख दिखाए लेकिन चाटुकारी की होड़ लगी है। बस सूरज से उसकी दूरी है इक अगर जग में अंधेरा घोर कहीं है। ...
कुछ नहीं दिखता सब धुआँ सा लगता है बहार का मौसम भी खिजा सा लगता है कि रूठा न करो मुुुुझसे छोटी छोटी बातों पर तुम रूठ जाते हो मुझसे तुम तो बहुत बुरा लगता है ........ मिलाप सिंह भरमौरी