Badlte rishte

बदलते रिश्ते
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सफ़ेद बाल
सफ़ेद धब्बेदार त्वचा थी
चेहरे की झूरियाँ
उसकी उम्र बता रही थी
झुका हुआ शरीर
काँपते हुए डंडे पर थमा था
इक लंबा सफर मानो
आँखों के गड्डों में छुपा था

बकरियाँ चराती
वो मिली वन में
उससे बात करने की इच्छा
हुई मेरे मन में
पीपल की छाया के नीचे
माथे के पसीने को पौंछकर

खड़ा हो गया मैं
बुढ़िया के पास जाकर
अम्मा जी क्या केआर रही हो
कहकर मैंने बात बढ़ाई
अम्मा जी ने भी मुझे
अपनी हालत बतलाई

पाँच बेटे है , सब के सब नौकर
पोस्ट मे भी
एक से एक उपर
बहुएँ हैं उनके बाल बच्चे हैं
शहरों में ही
क्वाटर में रहते हैं
पहले तो उसने
उनकी खूब अच्छाई सुनाई
पर धीरे धीरे आंसुओं ने

उसकी हकीकत बताई
रुँधे स्वर में वो लगी बोलने

अकेली घर में रहती हूँ
घर की सुनी दीवारों से ही
अपना दुख सुख कहती हूँ
दिनभर थक कर
शाम को जाकर
खुद अकेली रोटियाँ बनाती हूँ
रूखी सूखी भूख मिटाने को
सुबह शाम खाती हूँ

पड़ा रहता है एक बिछौना
रोज उस पर जाकर
सो जाती हूँ

दो चार महीने बाद
यदि किसी को आ जाए याद
दो चार सौ
मनी आडर से भिजवा देते हैं
बेटा होने का फर्ज अपना
सस्ते मेन ही निभा देते हैं

एक बार सबसे बड़े ने
कुछ दयालुता दिखलाई थी
शायद माँ बाप की मेहनत की
याद बन आई थी

अपने साथ ले गया था शहर को
अफसर की माँ होने का
गर्व हुआ था मुझको

क्वाटर क्या इक बंगला था
इतना सुंदर _
पूरे गाँव में नहीं था
बंगले के आगे कितनी सुंदर
इक फूलों की बाड़ी थी
सब बच्चों की अपनी अपनी
चलने फिरने को गाड़ी थी

उस दिन से ही मगर
बहू ने
अपना रंग दिखाना
शुरू कर दिया था
बंगले के पीछे वाले ,चीजों के कमरे में
मेरा बिछौना कर दिया था

बात बात पर न जाने मेरी
क्यों उसको गुस्सा आता था
बेटे को करते देख बातें मुझसे
उसका दिल दुखता जाता था

पाँच दिन गुजर गए थे
मुझको आए हुए
पोते पोतियों ने  कभी
हँस कर बात न की थी
रिश्ते में दादी भी होती है
शायद उनकी किताबों में
बात न थी

एक बार मैं जब हो गई बीमार
बहू से कहा बेटे ने
ले जाना इसे डॉक्टर के पास
बहुत देर तक वो करती रही विचार

मेरी तकलीफ से नहीं
उसका चेहरा बेकार की चिंता से डरा था
क्योंकि पर्ची पर लिखवाने के लिए
मेरा नाम बुरा था

अस्पताल गए हम
पर्ची पर मेरा नाम लिखवा आई
फिर बैठ गए बुलावे के इंतजार में
थोड़ी देर बाद
माधुरी आवाज आई

बहु ने कहा
माँ जी चलिए बारी आ गई

माँ जी अक्षर
वो भी उसकी जुबान से
पहली बार सुन रही थी
पहले तो बूढ़ी इधर आ
कहती थी

लोगों की वजह से ही सही
माँ जी तो सुन लिया था
फिर अचानक इस बात ने
मुझको सुन किया था


माधुरी कौन है मैंने पूछा
आपका नाम है
मैंने है सुझा
ओर क्या क्या बताऊँ
उनकी क्या क्या सुनाऊँ

फिर भी थोड़ा सा सुन लो
मेरा खाने का तरीका
मेरा पीने का तरीका
कुछ भी न उनको भाता था
ऐसे में मुझे मेरा
गाय सा सीधा ,गांव याद आता था

मेरे उठने बैठने
हँसने बोलने से भी
वो तंग होने लगे थे

लोगों के सामने
चुप रहने को बोलने लगे थे

एक बार तो
हद ही कर दी थी बहु ने
जब उसकी कुछ सहेलियाँ
घर में आई
बहु ने कुछ इस तरह मेरी
उनसे पहचान कारवाई

देहात से आई है
नोकरानी की माँ है
ऐसे शब्द सुन कर मेरी
अचानक आँख भर आई

शायद मेरा रहना उनके साथ

उन सबको खलता था
मेरा दिल भी अपने गांव में
आने को मचलता था

तब से लेकर अबतक
अपने घर में रहती हूँ
गरीबी में ही सही
मगर सम्मान से रहती हूँ

------ मिलाप सिंह भरमौरी

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