नाज
सच्चे झूठे कितने खाव
कभी अँगीठी कभी अलाव
पुंज बिखेरे तारे कितने
मांगे कोई मन्नत का ताज
आधी रात को सन्नाटा है
मन में है कोई उसके राज
वक्त के साय में हलचल है
बजा रहा है वो कैसा साज
झौंके का मालिक ओर ही है
खुद पे करें क्या फिर नाज
...... मिलाप सिंह भरमौरी
Comments
Post a Comment