रूप की

तू है राहत रूह की l
लगती है मीठी धूप सी ll

कुदरत का सरमाया है l
ये गागर तेरे रूप की ll

पर गहराई कैसे मापूं मैं l
वक्त के अँधे कूप की ll

सच बहुत रोया है तन्हा l
तारीफ सुनी जब झूठ की ll

..... मिलाप सिंह भरमौरी

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