मैं हूँ रेत सहरा की

चुभता है इस दिल में
कुछ तीखा सा खंजर सा
कम कैसे हो पाएगा
फर्क
धरती और अंबर सा
तन्हाई में जा कर के
इसलिए मैं रो लेता हूँ
कि
मैं हूँ रेत किसी सहरा की
और तू है मोती समंदर का

------ मिलाप सिंह भरमौरी

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